नारद जी ने रामायण की महिमा सनकादि मुनियो को बताई

नारद जी ने रामायण की महिमा सनकादि मुनियो को बताई

आज हम नारद जी ने रामायण की महिमा सनकादि मुनियो को क्या बताई थी ? इसके बारे में पढ़ेंगे | इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में दिया गया है जब ऋषियों ने महर्षि सूतजी पूछा तो सूतजी ने ऋषियों से कहा कि 

‘सूतजीने कहा–मुनिवरो | सनकादि महात्मा भगवान्‌ ब्रह्माजीके पुत्र माने गये हैं। उनमें ममता और अहंकारका तो नाम भी नहीं है। वे सब-के-सब ऊध्वरिता (नैष्ठिक ब्रह्मचारी) हैं |  मैं आपलोगोंसे उनके नाम बताता हूँ, सुनिये। सनक, सनन्दन, सनत्कुमार और सनातन–ये चारों सनकादि माने गये हैं |

वे भगवान्‌ विष्णुके भक्त और महात्मा हैं। सदा ब्रह्मके चिन्तनमें लगे रहते हैं। बड़े सत्यवादी हैं।

एक दिन वे महातेजस्वी ब्रह्मपुत्र सनकादि ब्रह्मा जी की सभा देखनेके लिये मेरु पर्वतके शिखर्पर गये॥

वहाँ भगवान्‌ विष्णुके चरणोंसे प्रकट हुई परम पुण्यमयी गंगानदी, जिन्हें सीता भी कहते हैं, बह रही थीं। उनका दर्शन करके वे तेजस्वी महात्मा उनके जलमें स्नान करनेको उद्यत हुए॥ 

इतनेमें हो देवर्षि नारदमुनि भगवानके नारायण आदि नामोंका उच्चारण करते हुए वहाँ आ पहुँचे॥ वे ‘नारायण। अच्युत  अनन्त! वासुदेव! जनार्दन यज्ञेश। यज्ञपुरुष! राम! विष्णों! आपको नमस्कार है।’इस प्रकार भगवननामका उच्चारण करके सम्पूर्ण जगत्‌को पवित्र बनाते और एकमात्र लोकपावनी गंगाकी स्तुति करते हुए वहाँ आये॥

उन्हें आते देख महातेजस्वी सनकादि मुनियोने उनकी यथोचित पूजा की तथा नारदजीने भी उन मुनियोंको मस्तक झुकाया॥

दनन्तर वहाँ मुनियोकी सभामें सनत्कुमारजीने भगवान्‌ नारायणके परम भक्त मुनिवर नारद से इस प्रकार कहा॥ 

सनत्कुमार बोले–महप्राज् नारदजी। आप समस्त मुनीश्वरो में सर्वज्ञ हैं। सदा श्रीहरिकी भक्तिमें तत्पर रहते हैं, अतः आपसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है॥ १३॥

इसलिये मैं पूछता हूँ, जिनसे समस्त चराचर जगदकी उत्पत्ति हुई है तथा ये गंगाजी जिनके चरणोंसे प्रकट हई हैं, उन श्रोहरिके स्वरूपका ज्ञान कैसे होता है? यदि आपकी हमलोगॉपर कृपा हो तो हमारे इस प्रश्वका यथार्थरूपसे विवेचन कीजिये॥

‘नारदजीने कहा–जो परसे भी परतर हैं, उन परमदेव श्रीरामको नमस्कार है। जिनका निवास-स्थान (परमधाम) उत्कृष्यसे भी उत्कृष्ट है तथा जो सगुण और निर्णुणरूप हैं, उन श्रीरामको मेरा नमस्कार है॥ ज्ञान-अज्ञान , धर्म-अधर्म तथा विद्या और अविद्या-ये सब जिनके अपने ही स्वरूप हैं तथा जो सबके आत्मरूप  हैं, उन आप परमेश्वरको नमस्कार है॥ 

जो दैत्योंका विनाश और नरकका अन्त करनेवाले हैं, जो अपने हाथके संकेतमात्र से अथवा अपनी भुजाओंके बलसे धर्मकी रक्षा करते है, पृथ्वीके भारका विनाश जिनका मनोरव्जनमात्र है और जो उस मनोरव्जनकी सदा अभिलाषा रखते हैं, उन रघुकुलदीप श्रौरामदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।॥

जो एक होकर भी चार स्वरूपों में अवतीर्ण होते हैं, जिन्होंने वानरॉंको साथ लेकर राक्षस सेनाका संहार किया है, उन दशरथनन्दन श्रीरामचद्धजीका मैं भजन करता हूँ॥ १८३॥ भगवान्‌ श्रीरामके ऐसे-ऐसे अनेक चरित्र हैं,जिनके नाम करोड़ों वर्षोंमें भी नहीं गिनाये जा सकते हैं॥

जिनके नामकी महिमाका मनु और मुनीश्वर भी ‘पार नहीं पा सकते, वहाँ मेरे-जैसे क्षुद्र जीवकी पहुँच कैसे हो सकती है | जिनके नामके स्मरणमात्रसे बड़े-बड़े पातकी भी पावन बन जाते हैं, उन परमात्माका स्तवन मेरे-जैसा तुच्छ बुद्धिवाला प्राणी कैसे कर सकता है| 

जो द्विज घोर कलियुगमें रामायण-कथाका आश्रय लेते हैं, वे ही कृतकृत्य हैं। उनके लिये तुम्हें सदा नमस्कार  करना चाहिये॥  भगवान्‌ की महिमाको जाननेके ‘लिये कार्तिक; माघ और चैत्रके शुक्ल पक्षमें रामायणकी अमृतमयी कथाका नवाह श्रवण करना चाहिये॥ 

ब्राह्मण सुदास गौतमके शापसे राक्षस-शरीरको प्राप्त हो गये थे; परंतु रामायणके प्रभावसे ही उन्हें उस शापसे छुटकारा मिला था॥

ऐसे नारद मुनि ने रामायण की महिमा सनकादि मुनियो को बताई | इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण जी में दिया गया है |  

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top