Vindheshwari Chalisa Lyrics in Hindi | विन्ध्येश्वरी चालीसा हिंदी में
श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा
( स्तुति )
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधयिनी ।
कलौहि कार्य सिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि वलतः ।।
( दोहा )
नमो नमो विन्धेश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।
सन्तजनों के काज में करती नहीं विलम्ब ॥।
जय जय जय विन्ध्याचल रानी।
आदि शक्ति जग विदित भवानी ॥।
सिंहवाहिनी जै जग माता।
जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ॥।
कष्ट निवारिणि जय जग देवी । जय जय जय असुरासुर सेवी ।।
महिमा अमित अपार तुम्हारी । शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥
दीनन के दुःख हरत भवानी । नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी ॥।
सब कर मनसा पुरवत माता । महिमा अमित जगत विख्याता ।।
जो जन ध्यान तुम्हारो लावे सो तुरतहि वांछित फल पावे॥
तु ही वैष्णबी तु ही रुद्राणी। तु ही शारदा अरु ब्रह्माणी॥
रमा राधिका श्यामा काली। तु ही मात सन्तन प्रतिपाली ॥
उमा माधवी चण्डी ज्वाला। वेगि मोहि पर होहु दयाला॥
तु ही हिंगलाज महारानी। तु ही शीतला अरु विज्ञानी ॥
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता । तु ही लक्ष्मी जग सुखदाता ॥।
तु ही जान्हवी अरु उत्राणी। हेमावति अम्बे निर्वाणी॥
अष्टभुजी वाराहिनि देवी। करत विष्णु शिव जाकर सेवी ॥।
चौसट्ठी देवी कल्याणी। गौरी मंगला सब गुणखानी |
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी। भद्रकाली सुन विनय हमारी ॥
वज़धारिणी शोक विनाशिनी । आयु रक्षिणी विन्ध्यनिवासिनी ।।
जया और विजया बैताली। मातु सुगन्धा अरु विकराली॥।
नाम अनन्त तुम्हार भवानी। बरनै किमि मानुष अज्ञानी॥
जा पर कृपा मातु तव होई। तो वह करै चहै मन जोई॥
कृपा करहु मो पर महारानी। सिद्ध करहु अम्बे मम बानी ॥
जो नर धरै मातु कर ध्याना। ताकर सदा होय कल्याना ॥
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै। जो देवी का जाप करावै ॥।
जो नर कहं ऋण होय अपारा । सो नर पाठ करै शत बारा॥
निश्चय ऋण मोंचन होई जाई । जो नर पाठ करैं मन लाई ॥
अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावै । या जग में सों अति सुख पावै ॥।
जाको व्याधि सताबै भाई। जाप करत सब दूरि पराई॥
जो नर अति बन्दी महं होई। बार हजार पाठ कर सोई॥
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई। सत्य वचन मम मानहु भाई ॥
जा पर जो कछु संकट होई॥-. निश्चय देविहिं सुमिरै सोई।॥
जो नर पुत्र होय नहि भाई सो नर या विधि करे उपाई ।।
पाँच वर्ष सो पाठ कराबै। नौरातर में विप्र जिमावै।॥
निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी पुत्र देहि ता कहं गुणखानी ॥
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै। विधि समेत पूजन करवावै॥
नितप्रति पाठ करै मन लाई। प्रेम सहित नहिं आन उपाई॥
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा। रंक पढ़त होवे अवनीसा।॥
यह जनि अचरज मानहुं भाई। कृपा दृष्टि तापर होइ जाई।॥
जय जय जय जगदम्ब भवानी । कूपा करहुं मोहि पर जन जानी ॥।
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